Tuesday, July 29, 2008

आतंकवाद की निंदा या उसका मुकाबला !!


"अहमदाबाद में हुए बम धमाको के बाद प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री ने कड़े शब्दों में निंदा की ! इससे आतंकवादी काफी डर गए होंगे !!" यह वाक्य एक न्यूज़ चैनल में एक दर्शक द्वारा भेजा गया था जिसे पढ़ कर दिमाग यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि १३० करोड़ आबादी वाले इस देश कि सुरक्षा के लिए काम कर रहे खुफिया विभाग को इन हादसों के बारे में क्या कोई पूर्व जानकारी नही होती ? गुप्तचर एजेंसी आईबी के कुल २५,००० जासूस देश के विभिन्न भागो में तैनात हैं फिर भी क्या वजह है कि आतंकवादी एक के बाद एक अलग-अलग शहरों में पूरी तैयारी के साथ यह धमाके कर रहें हैं । अभी FBI के तर्ज़ पर एक नई जाँच एजेंसी बनने के विषय में बात चल रही है लेकिन इससे कितना फायदा होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। जबकि जानकर यह मानते हैं की अभी भी हमारे खुफिया तंत्र काफ़ी सक्षम है बशर्ते उनका सही तरीके से इस्तेमाल हो। दुश्मन अब सीमा पर से हमला नही करते, वो अब हमारे देश के अन्दर ही मौजूद हैं। भारत के सभी प्रमुख शहर उनके निशाने पर है। हजारो जानो की जिम्मेदारी अब हमारे "भाग्य विधाताओ" पर हैं। अब उन्हें निंदा करने के अलावा कुछ सख्त कदम भी उठाना होगा तभी इन विनाशकारी ताकतों को मुँहतोड़ जवाब दिया जा सकता है।

Saturday, July 26, 2008

मेरे यूरोप यात्रा की झलकियाँ: नीदरलैंड (3)

नीदरलैण्ड जाना जाता है ट्यूलिप फूलों, पवन चक्की तथा जल प्रबंधन के लिए। देश का काफी बड़ा हिस्सा समुद्र तल से नीचे स्थित है जिसके कारण यहॉं जल प्रबंधन के अनूठे मिसाल देखने को मिलते है। हेंग शहर से ५० किमी की दूरी पर स्थित यूरोप के व्यस्तम बंदरगाह रोटरडैम में हमे यही दिखाने ले जाया गया। यह जगह समुद्र तल से ६ मीटर नीचे स्थित है। यूरोप मे माल वाहन के लिए जलमार्ग का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह सड़क, रेल तथा वायु मार्ग से किफायती है। बंदरगाह पर कंटेनर की जहाज पर लादने तथा निकालने का सारा तंत्र स्वचालित है। यहॉं बिना ड्राइवर के ट्राली को चलता देखकर सभी आर्श्चयचकित थे। हमारा अगला पड़ाव था हेग स्थित सेवा नेटवर्क जो कि नीदरलैण्ड की जानी मानी सामाजिक संस्था है। संस्था के निदेशक श्री राज भोन्दू ने अपने उद्बोधन में हिन्दू धर्म के नैतिक मूल्यों पर अपने तथा संस्था की निष्ठा को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि संस्था अंहिंसा, परस्पर सम्मान तथा विश्व-शांति पर विश्वास करती है। विश्व के कई देशों में कार्यरत यह संस्था भारत में झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में १०० शालाओ का निर्माण कर रही है जिससे करीब १०,००० बच्चे लाभान्वित होंगे। अंत मे हम नीदरलैण्ड के फारेन प्रेस एसोसिएशन से पत्रकारो से रूबरू हुए जिसमें जर्मनी, अमेरीका तथा रोमानिया के प्रतिनिधि मौजूद थें। संक्षिप्त वार्तालाप में हमने वहॉं के पत्रकारिता के स्तर तथा तंत्र को समझने का प्रयास किया।
नीदरलैण्ड में सूरीनामी हिन्दू काफी संख्या में है। उन्होने विदेश में भी अपनी भारतीय संस्कृति को सहेज कर रखा हुआ है। भारत में इनकी जड़े बिहार के भोजपुर क्षेत्र में हैं तथा भोजपुरी में इनकी निपुणता है। इसी वजह से नीदरलैण्ड सरकार ने अभी कुछ ही माह पूर्व मशहूर भोजपुरी अभिनेता तथा गायक मनोज तिवारी के छाया-चित्र वाली ४० सेन्ट का डाक टिकट जारी किया।

Thursday, July 24, 2008

मेरे यूरोप यात्रा की झलकियाँ: नीदरलैंड(2)

इस प्रकार हम हेग शहर की विभिन्न जानकारिया प्राप्त कर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की ओर रवाना हुए जोकि पीस पैलेस नामक भवन में स्थित है। यहॉं पर हमें क्रोअशिया तथा सर्बिया के बीच चल रहे मामले की सुनवाई को देखने का अवसर प्राप्त हुआ । पंद्रह न्यायधिशों के बेंच के सामने दोनो पक्षों के वकीलों को जिरह करते हुए दंखना एक नया अनुभव रहा । इसके पश्चात हम इसी भवन में स्थित पीस पैलेस लायब्रेरी में गए जहॉं हमें वहॉं के निदेशक ने पीस पैलेस के संबंध मे ऐतिहासिक जानकारियॉं दी। उन्होने बताया कि लायबे्ररी की किताबों को अगर सीधी रेखा मे लगाया जाए तो उनकी लंबाई करीब १६ किमी होगी । यह सुनकर हम सभी हतप्रभ थे।
हमारे अगले दिन की शुरूआत हुई इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट से। यहॉं पर हमें बहुत की जटिल सुरक्षा जॉंच से गुजरना पड़ा जिसके बाद ही हम कोर्टं परिसर मे दाखिल हो सके। इस कोर्ट में अंतराष्ट्रीय अपराधियों के मामलो की सुनवाई की जाती है। यहॉं पर वक्ताओं ने संबोधित करते हुए इसके प्रारंभ होने की वजह, इसके गठन तथा वर्तमान में चल रहे कुछ प्रकरण के संबंध में विस्तृत जानकारी दी । कोर्ट से हम सीधे नीदरलैण्ड़ की राजधानी एम्सटरडम के लिए रवाना हुए जहॉं हमने डच लेबर पार्टी की अंतर्राष्ट्रीय सचिव सुश्री लाफेबेर से मुलाकात की । काफी युवा होने बावजूद उनहे राजनीति का अच्छा अनुभव है। उनकी पार्टी वर्तमान में देश की सत्ता संभालने वाली गठबंधन सरकार में शामिल है। अपने उद्बोधन में उन्होंने देश की राजनीति शासन-व्यवस्था तथा समस्याओं के विषय में प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि सरकार के सामने सबसे बडी चुनौती अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा एवं संरक्षण है। इस ज्ञानवर्धक उद्बोधन के पश्चात हम सभी ने यह महसूस किया कि यहॉं के राजनितिज्ञ सरल, सादगीपूर्ण एवं अपने कार्यो के लिए अधिक जिम्मेदार है। अपने अगले मुलाकात के लिए हम काफी उत्साहित थे क्योंकि हमें मिलना था भारतीय राजदूत सुश्री नीलम सबरवाल से। जैसे ही हम द हेग स्थित उनके दूतवास में पहुचे उन्होंने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। वार्तालाप के दौरान उन्होंने भारत तथा नीदरलैण्ड के बीच विभिन्न व्यापारिक तथा राजनैतिक समझौतो के बारे मे बताया। हम सभी को यह जानकर अत्यंत खुशी हुई की नीदरलैण्ड सरकार ने इस वर्ष भारत-पर्व मनाने का निर्णय लिया है। वार्तालाप के पश्चात हमने भारतीय व्यन्जनों का भी आनंद लिया जोकि सभी के लिए एक सुखद अनुभव रहा ।

Tuesday, July 22, 2008

मेरे यूरोप यात्रा की झलकियाँ : नीदरलैंड !! (Glimpses of my Europe Tour: Netherlands)


अब लंदन को अलविदा कहने का समय आ गया था। हमने अपने अगले पड़ाव नीदरलैण्ड के शहर 'द हेग' के लिए बस के द्वारा प्रस्थान किया। हमें इंग्लिश चैनल पार करके फ्रांस के शहर केलिस पहुंचना था। हमने डूवर नामक पोर्ट से फेरी (जहाज) में बस सहित चैनल को पार किया। द हेग में 'ग्लोबल हयूमन राईट्स डिफेन्स' (जीएचआरडी ) नामक संस्था तथा द हेग विश्वविद्यालय ने हमारी मेजबानी की। सर्वप्रथम जीएचआरडी ने हमारे लिए औपचारिक स्वागत समारोह का आयोजन किया जिसमे संस्था के द्वारा दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा कश्मीर मे उनके द्वारा मानवाधिकार के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों के बारे मे विस्तारपूर्वक उद्बोधन दिया गया। अगले दिन हेग विश्वविद्यालय में हमारा स्वागत किया गया। विवि विधि विभाग के प्रमुख डॉं रिचर्ड ने अपने उद्बोधन मे बताया कि विवि में १०० से भी अधिक देशों से छात्र अध्ययन करने आते है तथा ज्ञान की विविधता ही इस विवि को अलग दर्जा दिलाता हैं। उन्होने बताया कि हेग शहर मे इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टीस, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट तथा पीस पैलेस की उपस्थिति के कारण विश्व में इसे विधि एवं न्याय का केन्द्र बिन्दु माना जाता है।

Saturday, July 19, 2008

मेरे यूरोप यात्रा की झलकियाँ : लन्दन (Glimpses of my Europe Tour : London)


हर नौजवान की तरह विदेश यात्रा करने की चाहत मुझमें तब से थी जब मुझे कम्प्यूटर इंजिनियरिंग में दाखिला मिला था परन्तु यह सपना दस वर्ष बाद कुछ इस प्रकार सत्य होगा इसका अंदाजा मुझे जरा भी नहीं था । हाल ही में मई-जून २००८ में यूरोप के पांच समृद्ध देशों की यात्रा मेरे लिए एक असाधारण अनुभव है तथा इसे आप सब लोगों में बॉंटने के लिए मैंने इस माध्यम का चुनाव किया । यहॉं पर पाठकों को बताना आवश्यक समझता हूँ कि यह विदेश यात्रा पुणे स्थित एशिया के प्रथम तथा एकमात्र राजनैतिक प्रशिक्षण संस्थान एमआयटी स्कूल ऑफ गवर्मेंट के छात्रों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है । इस २१ दिवसीय यूरोप यात्रा में हमें २५ से भी अधिक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

मुम्बई के छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से रात्रि उड़ान भरने के पश्चात हमारा पहला पड़ाव इंग्लैण्ड की राजधानी लंदन रहा । लंदन शहर की खूबसूरती का अनुमान हजारों फीट की ऊचाई से ही सहज लग जाता है । धने बादलों के बीच से देखने पर लंदन की हरियाली तथा बसाहट किसी का भी मन मोह लेगी। लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे को विश्व के विशालतम तथा व्यस्ततम. हवाई अड्डों में गिना जाता है । लंदन में हुए आतंकवादी हमलों के बाद देश की सुरक्षा में की गई तैयारियों का एहसास हमको हवाई अड्डें पर ही हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरा लंदन शहर सी.सी. टीवी के माध्यम से २४ घंटे सुरक्षा कर्मियों की निगरानी में रहता है । अभी लंदन में गर्मी का मौसम चल रहा है परन्तु दोपहर १२ बजे १३ डिग्री तापमान ने सभी को गर्म कपड़े पहनने पर मजबूर कर दिया ।

लम्बी यात्रा के कारण थकान तथा समय चक्र में बदलाव ने सभी को होटल के कमरों में आराम के लिए विवश कर दिया था । शाम को बस के द्वारा लंदन भ्रमण करते हुए हम स्वामीनारायण मंदिर के लिए रवाना हुए जहॉं प्रतिदिन हमारे रात्रि-भोज की ब्यवस्था की गई थी । मंदिर चाहे भारत में हो या विदेश में, हमारी भक्ति एक समान ही होती है । सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही अद्भूत शांति की अनुभूति होती है और साथ ही साथ इसकी भव्यता तथा विशालता आश्चर्यचकित भी करती है। लंदन में पहले दिन का आखिरी अनुभव यह रहा कि रात्रि के ९:३० बजे भी दिन के जैसा उजाला होता हैं ।

दूसरें दिन की शुरूआत होते ही शुरू हुआ आधिकारिक मुलाकातों का दौर। सर्वप्रथम हम पहुंचे इंटरनेशनल पॉलिसी नेटवर्क के कार्यालय में जोकि एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन है । यह संगठन गरीबी उन्मूलन, बेहतर स्वास्थ्य तथा पर्यावरण-रक्षा के क्षेत्र में विश्व-स्तर पर बनने वाले योजनाओं को बहुत बारिकी से अध्ययन करता हैं तथा उन्हें और बेहतर तथा प्रभावी बनाने हेतु सुझाव देकर विभिन्न देशों में लोकहित के लिए कार्य करता हैं । वर्तमान में यह संगठन विश्व के ३५ देशों में कार्यरत है । संस्था का मानना था कि वे तो योजनाओं के बेहतर क्रियान्वन के लिए हर स्तर पर प्रयास करते हैं परन्तु सफलता तभी प्राप्त होगी जब इसमें सामान्य जनता की भी भागीदार होगी । उन्होंने सरकारों से भी अपील की है कि किसी भी योजना को बनातें समय योजना से जुड़े विभिन्न संगठनों तथा विद्वानों की राय जरुर लेनी चाहिए। वास्तव में अगर ऐसे संस्थाओं के प्रयास को समाज की जागरूकता का साथ मिल जाए तो समस्त योजनाओं का लाभ आम जनता को प्राप्त हो सकता है ।

इसके पश्चात अपने अगले भेंटवार्ता के लिए हमने प्रस्थान किया विश्वविख्यात शिक्षण संस्थान लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइंस की ओर। सन् १८९५ में प्रारंभ हुई इस संस्था से तेरह लोगों को नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी भी इस संस्था से उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। यह संस्थान अपने उच्चकोटि के शोधकार्य के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । संस्थान के शोध बहुत से बहुराष्ट्रीय कंपनियां तथा राष्ट्रों को अपनी आर्थिक योजना बनाने में सहायता करती है। इस संस्था की विशालता का सहज अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां यूरोप का सबसे बड़ा पुस्तकालय है जिसमें ४० लाख किताबे तथा २८,००० पत्रिकाऍं हैं । इंग्लैण्ड सरकार के हर आर्थिक मुद्दों पर लिए गए निर्णय में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स की भागीदारी होती है ।

इस व्यस्त क्रार्यक्रम के बीच समय निकाल कर लंदन के टेम्स नदी पर बने लंदन ब्रीज का अवलोकन करना हम सभी के लिए एक सुखद अनुभव रहा। यह पुल दो भागों में बना हुआ है जो जहाज के आवागमन के लिए बीच से खोला जा सकता है। इसके अलावा दूसरा आकर्षण रहा लंदन-आय के नाम से प्रसिद्ध विशाल हवाई-झूला। इस हवाई-झूले से लगभग सम्पूर्ण लंदन को देखा जा सकता है तथा इसे एक पूरा चक्क्र लगाने में लगतें हैं ४५ मिनट । अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना विशाल है ।

तीसरे दिन की शुरूआत हुई पत्रकारों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्था नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (एनयूजे) से। संस्था के शोध विशेषज्ञ श्री डेविड एरिटन ने बताया कि संस्था विभिन्न पत्रकारों का संगठन है जिसमें विश्व भर से ८०,००० सदस्य हैं । उन्होंने पत्रकारिता में नए प्रयोगों पर जोर दिया और कहा कि सूचना क्रांति की वजह से स्थानीय स्तर पर पत्रकारिता में काफी तेजी से वृद्धि हुई है । यह संस्था विभिन्न मजदूर संगठनों से तालमेल कर उनकी आवाज को बुलंद करने में उनकी सहायता करती है । संस्था का मानना है कि मीडिया को टीआरपी के लिए नहीं वरन् समाज में सही संदेश पहुंचाने के लिए कार्य करना चाहिए ।

एनयूजे से एक अच्छा अनुभव प्राप्त करके हम चल पड़े राष्ट्रकुल सचिवालय की ओर। सचिवालय भवन किसी महल से कम प्रतीत नहीं होता । मिटिंग-हाल की साज-सज्जा सोने के महल सी प्रतीत होती है । इस भव्य-हाल में हमें श्री अमिताभ बेनर्जी, पवन कपूर तथा एडिवन लारेंट ने संबोधित करते हुए बतलाया कि राष्ट्रकुल ५३ देशों का संघ है जो अपने अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए एक मंच पर कार्य करते हैं । संघ का कोई लिखित संविधान नहीं है परन्तु विभिन्न समझौतों के जरिए इनके लक्ष्य तय किए गए है । उन्होंने यह तथ्य साफ किया कि राष्ट्रकुल अब ब्रिटिश राष्ट्रकुल नहीं है वरन एक स्वंतत्र संगठन है । सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई जिसे सदस्य देशों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी दी गई । राष्ट्रकुल सचिवालय के वर्तमान महासचिव श्री कमलेश शर्मा है । संघ का ३० प्रतिशत बजट ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की जाती है । संघ विश्व स्तर पर युवाओं की उन्नति के लिए भी कार्य कर रहा है । दिन के अंत हमारी मुलाकात तय थी ब्रिटेन के शैडो-फारेन सेक्रेटरी श्री एडवर्ड डेवी के साथ जो कि लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद हैं । इतने बड़े स्तर के राजनीतिक की सादगी देखकर हम हैरान रह गए । उनके कार्यालय के बाहर हमने कुछ देर उनका इंतजार किया तत्पश्चात वे स्वयं अपनी कार चलाते हुए वहॉं पर पहुंचे वो भी बिना किसी लाव-लश्कर के साथ । हमारे लिए राजनीति में सादगीपूर्ण जीवनशैली का यह अनोखा अनुभव रहा। उनके साथ भारत-ब्रिटेन संबंधो पर चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा कि ब्रिटेन भारत को आज एक नए शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देख रहा है तथा भविष्य में भारत के साथ संबंध और मजबूत होंगे । इसके अलावा उनसें १२३ डील के बारे में चर्चा हुई जिसे उन्होंने भारत के लिए सराहनीय कदम बताया अंत में उन्होंने ब्रिटेन की राजनीति तथा वहॉं होने वाले चुनाव के संबंध में सारगार्भित जानकारी दी ।

अगले दिन हमें ऐतिहासिक ब्रिटिश संसद में जाने का मौका मिला। वेस्ट-मिन्सटर महल, जहॉं ब्रिटिश संसद के दानों सदन हाऊस आफ लार्डस तथा हाऊस आफ कामंस समाहित है , कि भव्यता तथा विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस भवन में ११०० कमरे, १०० अलग -अलग सीढ़ियों तथा ४.८ कि.मी लम्बी कॉरिडोर है । १९वी शताब्दी में बने इस भवन को १८३४ में आग लगाकर ध्वस्त कर दिया गया था परन्तु लगभग ३० सालों के जीर्णोधार के बाद इस पुन: स्थापित किया गया । इतना ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस महल में १४ बार बम गिराए गए जिससे १९४१ में हाऊस ऑफ कॉमन्स पूरी तरह ध्वस्त हो गया जिसका पुननिर्माण का कार्य १९५० तक चला और वह फिर से पुराने रूप में आ गया। हमारे भारतीय संसद की संरचना इसी के अनुसार की गई है। कुल मिलाकर संसद भवन को सचमूच शाही अंदाज से बनाया गया है ।

मुलाकातों का दौर समाप्त हुआ तो कुछ समय लंदन के सौन्दर्य तथा विशेष स्थानों को देखने के लिए निकाला । बकिंघम पैलेस का नाम लगभग सभी लोग जानते है। पैलेस देखने का आनंद दुगुना हो जाता है जब सुबह चेंज ऑफ गार्ड देखने का मौका मिलता है । संगीतमय परेड करते हुए महल की ओर जाते हुए रायल गाड्र्स को देखने के लिए हजारों की तादात में लोग रोजाना उपस्थित होते हैं । शाही महल तथा शानदार परेड देखने के बाद अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए हमने शहर के प्रसिद्ध हिस्ट्री-म्यूजियम तथा जियाग्रफी-म्यूजम में कदम रखा । इस शानदार रखरखाव वाले विशाल संग्राहालय में प्रवेश नि:शुल्क है लेकिन ज्ञान अपार है ।

आखिरी में हम लंदन के ऐसे भाग में गए जिसे लोग मिनी-ईंडिया कहते हैं। इस जगह का नाम है साउथ-हाल। इस भाग मे सिर्फ भारतीय रहते हैं तथा यहॉ का बाजार देखकर कुछ देर के लिए भ्रम हो जाता है कि यह लंदन है या दिल्ली।