Saturday, July 19, 2008
मेरे यूरोप यात्रा की झलकियाँ : लन्दन (Glimpses of my Europe Tour : London)
हर नौजवान की तरह विदेश यात्रा करने की चाहत मुझमें तब से थी जब मुझे कम्प्यूटर इंजिनियरिंग में दाखिला मिला था परन्तु यह सपना दस वर्ष बाद कुछ इस प्रकार सत्य होगा इसका अंदाजा मुझे जरा भी नहीं था । हाल ही में मई-जून २००८ में यूरोप के पांच समृद्ध देशों की यात्रा मेरे लिए एक असाधारण अनुभव है तथा इसे आप सब लोगों में बॉंटने के लिए मैंने इस माध्यम का चुनाव किया । यहॉं पर पाठकों को बताना आवश्यक समझता हूँ कि यह विदेश यात्रा पुणे स्थित एशिया के प्रथम तथा एकमात्र राजनैतिक प्रशिक्षण संस्थान एमआयटी स्कूल ऑफ गवर्मेंट के छात्रों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है । इस २१ दिवसीय यूरोप यात्रा में हमें २५ से भी अधिक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
मुम्बई के छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से रात्रि उड़ान भरने के पश्चात हमारा पहला पड़ाव इंग्लैण्ड की राजधानी लंदन रहा । लंदन शहर की खूबसूरती का अनुमान हजारों फीट की ऊचाई से ही सहज लग जाता है । धने बादलों के बीच से देखने पर लंदन की हरियाली तथा बसाहट किसी का भी मन मोह लेगी। लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे को विश्व के विशालतम तथा व्यस्ततम. हवाई अड्डों में गिना जाता है । लंदन में हुए आतंकवादी हमलों के बाद देश की सुरक्षा में की गई तैयारियों का एहसास हमको हवाई अड्डें पर ही हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरा लंदन शहर सी.सी. टीवी के माध्यम से २४ घंटे सुरक्षा कर्मियों की निगरानी में रहता है । अभी लंदन में गर्मी का मौसम चल रहा है परन्तु दोपहर १२ बजे १३ डिग्री तापमान ने सभी को गर्म कपड़े पहनने पर मजबूर कर दिया ।
लम्बी यात्रा के कारण थकान तथा समय चक्र में बदलाव ने सभी को होटल के कमरों में आराम के लिए विवश कर दिया था । शाम को बस के द्वारा लंदन भ्रमण करते हुए हम स्वामीनारायण मंदिर के लिए रवाना हुए जहॉं प्रतिदिन हमारे रात्रि-भोज की ब्यवस्था की गई थी । मंदिर चाहे भारत में हो या विदेश में, हमारी भक्ति एक समान ही होती है । सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही अद्भूत शांति की अनुभूति होती है और साथ ही साथ इसकी भव्यता तथा विशालता आश्चर्यचकित भी करती है। लंदन में पहले दिन का आखिरी अनुभव यह रहा कि रात्रि के ९:३० बजे भी दिन के जैसा उजाला होता हैं ।
दूसरें दिन की शुरूआत होते ही शुरू हुआ आधिकारिक मुलाकातों का दौर। सर्वप्रथम हम पहुंचे इंटरनेशनल पॉलिसी नेटवर्क के कार्यालय में जोकि एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन है । यह संगठन गरीबी उन्मूलन, बेहतर स्वास्थ्य तथा पर्यावरण-रक्षा के क्षेत्र में विश्व-स्तर पर बनने वाले योजनाओं को बहुत बारिकी से अध्ययन करता हैं तथा उन्हें और बेहतर तथा प्रभावी बनाने हेतु सुझाव देकर विभिन्न देशों में लोकहित के लिए कार्य करता हैं । वर्तमान में यह संगठन विश्व के ३५ देशों में कार्यरत है । संस्था का मानना था कि वे तो योजनाओं के बेहतर क्रियान्वन के लिए हर स्तर पर प्रयास करते हैं परन्तु सफलता तभी प्राप्त होगी जब इसमें सामान्य जनता की भी भागीदार होगी । उन्होंने सरकारों से भी अपील की है कि किसी भी योजना को बनातें समय योजना से जुड़े विभिन्न संगठनों तथा विद्वानों की राय जरुर लेनी चाहिए। वास्तव में अगर ऐसे संस्थाओं के प्रयास को समाज की जागरूकता का साथ मिल जाए तो समस्त योजनाओं का लाभ आम जनता को प्राप्त हो सकता है ।
इसके पश्चात अपने अगले भेंटवार्ता के लिए हमने प्रस्थान किया विश्वविख्यात शिक्षण संस्थान लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइंस की ओर। सन् १८९५ में प्रारंभ हुई इस संस्था से तेरह लोगों को नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी भी इस संस्था से उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। यह संस्थान अपने उच्चकोटि के शोधकार्य के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । संस्थान के शोध बहुत से बहुराष्ट्रीय कंपनियां तथा राष्ट्रों को अपनी आर्थिक योजना बनाने में सहायता करती है। इस संस्था की विशालता का सहज अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां यूरोप का सबसे बड़ा पुस्तकालय है जिसमें ४० लाख किताबे तथा २८,००० पत्रिकाऍं हैं । इंग्लैण्ड सरकार के हर आर्थिक मुद्दों पर लिए गए निर्णय में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स की भागीदारी होती है ।
इस व्यस्त क्रार्यक्रम के बीच समय निकाल कर लंदन के टेम्स नदी पर बने लंदन ब्रीज का अवलोकन करना हम सभी के लिए एक सुखद अनुभव रहा। यह पुल दो भागों में बना हुआ है जो जहाज के आवागमन के लिए बीच से खोला जा सकता है। इसके अलावा दूसरा आकर्षण रहा लंदन-आय के नाम से प्रसिद्ध विशाल हवाई-झूला। इस हवाई-झूले से लगभग सम्पूर्ण लंदन को देखा जा सकता है तथा इसे एक पूरा चक्क्र लगाने में लगतें हैं ४५ मिनट । अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना विशाल है ।
तीसरे दिन की शुरूआत हुई पत्रकारों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्था नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (एनयूजे) से। संस्था के शोध विशेषज्ञ श्री डेविड एरिटन ने बताया कि संस्था विभिन्न पत्रकारों का संगठन है जिसमें विश्व भर से ८०,००० सदस्य हैं । उन्होंने पत्रकारिता में नए प्रयोगों पर जोर दिया और कहा कि सूचना क्रांति की वजह से स्थानीय स्तर पर पत्रकारिता में काफी तेजी से वृद्धि हुई है । यह संस्था विभिन्न मजदूर संगठनों से तालमेल कर उनकी आवाज को बुलंद करने में उनकी सहायता करती है । संस्था का मानना है कि मीडिया को टीआरपी के लिए नहीं वरन् समाज में सही संदेश पहुंचाने के लिए कार्य करना चाहिए ।
एनयूजे से एक अच्छा अनुभव प्राप्त करके हम चल पड़े राष्ट्रकुल सचिवालय की ओर। सचिवालय भवन किसी महल से कम प्रतीत नहीं होता । मिटिंग-हाल की साज-सज्जा सोने के महल सी प्रतीत होती है । इस भव्य-हाल में हमें श्री अमिताभ बेनर्जी, पवन कपूर तथा एडिवन लारेंट ने संबोधित करते हुए बतलाया कि राष्ट्रकुल ५३ देशों का संघ है जो अपने अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए एक मंच पर कार्य करते हैं । संघ का कोई लिखित संविधान नहीं है परन्तु विभिन्न समझौतों के जरिए इनके लक्ष्य तय किए गए है । उन्होंने यह तथ्य साफ किया कि राष्ट्रकुल अब ब्रिटिश राष्ट्रकुल नहीं है वरन एक स्वंतत्र संगठन है । सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई जिसे सदस्य देशों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी दी गई । राष्ट्रकुल सचिवालय के वर्तमान महासचिव श्री कमलेश शर्मा है । संघ का ३० प्रतिशत बजट ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की जाती है । संघ विश्व स्तर पर युवाओं की उन्नति के लिए भी कार्य कर रहा है । दिन के अंत हमारी मुलाकात तय थी ब्रिटेन के शैडो-फारेन सेक्रेटरी श्री एडवर्ड डेवी के साथ जो कि लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद हैं । इतने बड़े स्तर के राजनीतिक की सादगी देखकर हम हैरान रह गए । उनके कार्यालय के बाहर हमने कुछ देर उनका इंतजार किया तत्पश्चात वे स्वयं अपनी कार चलाते हुए वहॉं पर पहुंचे वो भी बिना किसी लाव-लश्कर के साथ । हमारे लिए राजनीति में सादगीपूर्ण जीवनशैली का यह अनोखा अनुभव रहा। उनके साथ भारत-ब्रिटेन संबंधो पर चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा कि ब्रिटेन भारत को आज एक नए शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देख रहा है तथा भविष्य में भारत के साथ संबंध और मजबूत होंगे । इसके अलावा उनसें १२३ डील के बारे में चर्चा हुई जिसे उन्होंने भारत के लिए सराहनीय कदम बताया अंत में उन्होंने ब्रिटेन की राजनीति तथा वहॉं होने वाले चुनाव के संबंध में सारगार्भित जानकारी दी ।
अगले दिन हमें ऐतिहासिक ब्रिटिश संसद में जाने का मौका मिला। वेस्ट-मिन्सटर महल, जहॉं ब्रिटिश संसद के दानों सदन हाऊस आफ लार्डस तथा हाऊस आफ कामंस समाहित है , कि भव्यता तथा विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस भवन में ११०० कमरे, १०० अलग -अलग सीढ़ियों तथा ४.८ कि.मी लम्बी कॉरिडोर है । १९वी शताब्दी में बने इस भवन को १८३४ में आग लगाकर ध्वस्त कर दिया गया था परन्तु लगभग ३० सालों के जीर्णोधार के बाद इस पुन: स्थापित किया गया । इतना ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस महल में १४ बार बम गिराए गए जिससे १९४१ में हाऊस ऑफ कॉमन्स पूरी तरह ध्वस्त हो गया जिसका पुननिर्माण का कार्य १९५० तक चला और वह फिर से पुराने रूप में आ गया। हमारे भारतीय संसद की संरचना इसी के अनुसार की गई है। कुल मिलाकर संसद भवन को सचमूच शाही अंदाज से बनाया गया है ।
मुलाकातों का दौर समाप्त हुआ तो कुछ समय लंदन के सौन्दर्य तथा विशेष स्थानों को देखने के लिए निकाला । बकिंघम पैलेस का नाम लगभग सभी लोग जानते है। पैलेस देखने का आनंद दुगुना हो जाता है जब सुबह चेंज ऑफ गार्ड देखने का मौका मिलता है । संगीतमय परेड करते हुए महल की ओर जाते हुए रायल गाड्र्स को देखने के लिए हजारों की तादात में लोग रोजाना उपस्थित होते हैं । शाही महल तथा शानदार परेड देखने के बाद अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए हमने शहर के प्रसिद्ध हिस्ट्री-म्यूजियम तथा जियाग्रफी-म्यूजम में कदम रखा । इस शानदार रखरखाव वाले विशाल संग्राहालय में प्रवेश नि:शुल्क है लेकिन ज्ञान अपार है ।
आखिरी में हम लंदन के ऐसे भाग में गए जिसे लोग मिनी-ईंडिया कहते हैं। इस जगह का नाम है साउथ-हाल। इस भाग मे सिर्फ भारतीय रहते हैं तथा यहॉ का बाजार देखकर कुछ देर के लिए भ्रम हो जाता है कि यह लंदन है या दिल्ली।
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2 comments:
राजीव भाई, बहुत बहुत धन्यवाद हिन्दी में पोस्ट लिखने के लिए ।
आपने बहुत ही बोधगम्य तरीके से अपना यात्रावृत्तांत लिखा है । पढते हुए कुछ ऐसा लग रहा है कि जैसे हम स्वयं उन जगहों की सैर कर रहे हों ।
आभार ।
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आरंभ ‘अंतरजाल में छत्तीसगढ का स्पंदन’
बडी ही मधुर तारतम्यता मे आपने ज्ञान वर्धक जानकारी दी आभार !! और हा राजिम का नाम रोशन करने के लिये हार्दिक बधाई पुनश्च !!
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